विनायक दामोदर सावरकर को वीर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है। वे भारत की एक अद्भुत विभूति हुए हैं। वे बहु-पठित, विद्वान एवं मनीषी चिंतक थे। भारत माता से उन्हें अनन्य प्रेम था। वे क्रांतिकारियों के गुरु तथा सुभाषचंद्र बोस जैसे विराट् व्यक्तित्व के मार्ग दर्शक थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि केसरीसिंह के व्यक्तित्व निर्माण में वीर सावरकर का बहुत बड़ा योगदान था। यह योगदान प्रत्यक्ष नहीं होकर परोक्ष रूप से हुआ। वीर सावरकर ने लंदन में पढ़ाई करते समय इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी की जीवनी को पढ़ा। वे इससे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस जीवनी का मराठी में अनुवाद किया तथा उसे गुप्त रूप से महात्मा तिलक को भेज दिया। यह पुस्तक अंग्रेजी राज्य में प्रतिबंधित थी। यह पुस्तक केसरीसिंह के हाथ लग गई। इस प्रकार सावरकर द्वारा भारत में उपलब्ध कराई गई इस पुस्तक ने केसरीसिंह के विचारों को दृढ़ता एवं दिशा प्रदान की। संभवतः मैजिनी का चरित्र ही वीर सावरकर तथा केसरीसिंह की वैचारिक साम्यता का वह समान आधार (कॉमन प्लेटफॉर्म) था जिसके कारण भारत भूमि में केवल ये दो परिवार ही ऐसे उदाहरण बनकर सामने आये जिनमें पूरा का पूरा परिवार ही स्वातंत्र्य बलिवेदी पर चढ़ने को प्रस्तुत हो गया।
विनायक दामोदर सावरकर महाराष्ट्र में जन्मे थे। वीर सावरकर के जीवन की कई बातें केसरीसिंह बारहठ से साम्य रखती हैं-
1. वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ही सशस्त्र क्रांति में विश्वास रखते थे।
2. दोनों का देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों से सम्पर्क था।
3. दोनों ने ही देश के क्रांति आंदोलन को अपनी सेवाएं उपलब्ध करवाईं।
4. वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ने ही देश की स्वतंत्रता के लिये जेल की यातनाएँ भोगीं। यहाँ इतना अंतर अवश्य था कि वीर सावरकर को दो बार काले पानी की सजा हुई जबकि केसरीसिंह केवल पांच वर्ष जेल में रहे।
5. वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ने अपने पूरे परिवार को क्रांति के मार्ग पर लगा दिया। इस कारण दोनों के परिवारों के सदस्यों ने जेल की यातनाएं भोगीं।
6. क्रांतिकारी विचारों के कारण ही वीर सावरकर के भाई दामोदर सावरकर को उपद्रवियों की भीड़ ने मार डाला जबकि केसरीसिंह के पुत्र को जेल में यातनाएं देकर मारा गया।
7. वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ही उत्कृष्ट कोटि के साहित्यकार थे। दोनों ने अपने समय के श्रेष्ठतम साहित्य की रचना की। दोनों के द्वारा रचित साहित्य राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत है।
8. वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ही इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी से प्रभावित थे। वीर सावरकर ने मैजिनी की जीवनी का मराठी में अनुवाद करके उसे चुपके से महात्मा तिलक को भिजवाया। केसरीसिंह ने इस पुस्तक को पढ़कर मैजिनी को अपना आदर्श और राजनैतिक गुरु मान लिया।
9. वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ही संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। वीर सावरकर ने हिन्दी, मराठी तथा संस्कृत भाषाओं में साहित्य की रचना की जबकि केसरीसिंह ने हिन्दी, डिंगल और संस्कृत भाषाओं में साहित्य की रचना की।
10. वीर सावरकर से मार्ग दर्शन प्राप्त करने के बाद सुभाषचंद्र बोस ने जापान और जर्मनी से मित्रता की। केसरीसिंह भी जापान से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग देने की आशा रखते थे। वे जापान को यूरोपीय तकनीक और शक्ति का मुंह तोड़ जवाब देने में समर्थ समझते थे।
सावरकर और केसरीसिंह में अंतर
1. वीर सावरकर महाराष्ट्र प्रांत में सामान्य परिवेश में जन्मे थे जबकि केसरीसिंह राजपूताने के सामंती परिवेश में जन्मे थे।
2. वीर सावकर ने विदेशों में रहकर शिक्षा प्राप्त की जबकि केसरीसिंह ने उदयपुर की चारण पाठशाला में रहकर शिक्षा प्राप्त की।
3. वीर सावरकर गांधी के विचारों से सहमत नहीं थे इस कारण गांधी की हत्या के बाद वीर सावरकर पर भी हत्या में शामिल होने के संदेह में मुकदमा चला किंतु केसरीसिंह गांधी के प्रशंसक थे तथा अपना शेष जीवन गांधी के साथ बिताने की इच्छा रखते थे।
4. वीर सावरकर की मृत्यु देश की आजादी के काफी बाद हुई जबकि केसरीसिंह स्वतंत्रता का सूर्य देखने से पहले ही धरती से विदा हो गये।
5. कांग्रेस वीर सावरकर के मार्ग से सहमत नहीं थी जबकि केसरीसिंह का कांग्रेस के नेताओं में’बहुत सम्मान था।
निष्कर्ष
वीर सावरकर और केसरीसिंह दोनों ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। दोनों ने अपने परिवार के समस्त सदस्यों को क्रांति मार्ग पर झौंक दिया। दोनों ने राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत साहित्य की रचना की। दोनों ही इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी के प्रशंसक थे और दोनों ही जापान को मित्र राष्ट्र के रूप में देखते थे। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वीर सावरकर और केसरीसिंह में साम्य अधिक है, अंतर कम।