Saturday, July 27, 2024
spot_img

25. बगल में छुरियाँ

हालांकि औरंगज़ेब तथा मुरादबक्श दोनों ने शाहशुजा को लिखे पत्रों में शाहशुजा को हिन्दुस्तान का अगला बादशाह कहकर सम्बोधित किया था किंतु जिस समय शाहशुजा की सेनाएं बनारस में शाही सेनाओं से युद्ध कर रही थीं, तब कुछ ऐसे समाचार मिले कि शाहशुजा आसानी से दारा को परास्त कर देगा। अतः मुराद चिंता में पड़ गया। उसने अपनी पहले से तय नीति को छोड़ दिया तथा अपने वजीर अलीनकी का कत्ल करके स्वयं को गुजरात का बादशा घोषित कर दिया तथा अपने नाम के सिक्के ढलवाए। वजीर अलीनकी, बादशाह शाहजहाँ तथा वली-ए-अहद दारा शिकोह का विश्वसनीय था। मुगलिया सल्तनत से वफादारी करने की कीमत उसे अपनी गर्दन देकर चुकानी पड़ी।

मुराद को भरोसा था कि उसके बड़े भाई औरंगज़ेब को ताज और तख्त से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए वह अवश्य ही मुराद को बादशाह स्वीकार कर लेगा। वह दक्षिण की तरफ से आ रही औरंगज़ेब की सेनाओं की टोह लेता रहा और स्वयं भी आगे बढ़ता रहा। अंत में मुराद दिपालपुर में जाकर रुक गया। यहीं पर औरंगज़ेब की सेनाएँ, मुराद की सेनाओं से आगर मिल गईं। दोनों भाई बगल में छुरियां लेकर बगलगीर हुए। औरंगज़ेब ने मुराद की बड़ी हौंसला अफजाई की तथा इस बात के लिए उसकी पीठ ठोकी कि उसने खुद को बादशाह घोषित कर दिया। शाहशुजा तो वैसे भी काफिर दारा से हारकर बंगाल चला गया है और हारा हुआ शहजादा बादशाह कैसे बन सकता है! राज्य के लालची मुराद को औरंगज़ेब की बातों से बड़ी तसल्ली पहुंची।

मुराद को औरंगज़ेब के हाथ की तस्बीह और माथे पर रखी हुई नमाजी टोपी दिखाई देती थी किंतु औरंगज़ेब की आँखों में भरी हुई मक्कारी और दिल में भरे हुए नफरत के शोले नहीं दिखते थे। वह सपने में भी नहीं सोच सकता था कि विनम्रता का अवतार बना हुआ यह कपटी औरंगज़ेब पहले तो मुराद को दारा शिकोह के विरुद्ध उपयोग करेगा और उसके बाद मुराद को भी उसी जहन्नुम में पहुँचा देगा जहाँ वह आज तक अपने दुश्मनों को पहुँचाता आया था और जहाँ तक वह जितनी जल्द हो सके, शाहशुजा और दारा शिकोह को भी पहुँचाना चाहता था।

जब दारा ने सुना कि दोनों शाहजादों की संयुक्त सेनाएँ दिपालपुर में आकर मिल गई हैं तो उसने बादशाह की तरफ से फरमान जारी किया कि मारवाड़ नरेश जसवन्तसिंह अपनी सेनाएं लेकर बनारस से सीधे ही दिपालपुर की तरफ बढ़ें और उज्जैन में क्षिप्रा के उत्तरी तट पर रुककर औरंगज़ेब और मुराद की सेनाओं को आगे बढ़ने से रोकें। बादशाह का आदेश पाते ही महाराजा जसवंतसिंह ने अपनी सेनाओं का मुँह उज्जैन की तरफ मोड़ दिया।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source