Thursday, September 19, 2024
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हाड़ौती

हाड़ौती क्षेत्र पर पहले मीणों का राज्य था। बूंदा मीणा को परास्त करके चौहानों की खींची शाखा के राजपूतों ने इस क्षेत्र पर अधिकार किया। चौहानों का राज्य बूंदी कहलाया। इस वंश के राजा हरराज के नाम पर बूंदी के राजा हाड़ा राजपूत कहलाए। उसी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम हाड़ौती हुआ। बूंदी राज्य में से कोटा राज्य निकला, कोटा राज्य में से झालावाड़ राज्य अलग हुआ। आजादी के बाद हाड़ौती क्षेत्र में कोटा, बूंदी, झालवाड़ तथा बारां जिले बनाए गए।

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केसरोली दुर्ग - www.bharatkaitihas.com

केसरोली दुर्ग

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यह दुर्ग धरती से डेढ़-दो सौ फुट ऊंची चट्टान जैसी पहाड़ी पर बना हुआ है। दुर्ग के भीतर कई महल हैं। एक विशाल कुंआ भी बना हुआ है। दुर्ग के उत्तर की ओर एक तालाब है।
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भैंसरोड़गढ़ दुर्ग

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कर्नल टॉड के अनुसार भैंसरोड़गढ़ का नाम भैंसाशाह नामक व्यापारी तथा रोड़ा नाम के बंजारा के नाम पर पड़ा। उन्होंने इस दुर्ग का निर्माण अपने व्यापारी काफिलों को वर्षाकाल में पहाड़ी लुटेरों से बचाने के लिये करवाया।
नाडौल का दुर्ग - www.bharatkaitihas.com

नाडौल का दुर्ग

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नाडोल कस्बे में नीलकंठ महादेव मंदिर के पीछे नाडोल दुर्ग के नाम मात्र के अवशेष स्थित हैं। जब महमूद गजनवी अफगानिस्तान से चलकर थार का रेगिस्तान पार करके अन्हिलवाड़ा तथा सोमनाथ को लूटने के लिये जा रहा था, तब उसने मार्ग में इस दुर्ग को तोड़ा। बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस दुर्ग को नष्ट कर दिया।
सांचोर तथा रतनुपर दुर्ग - www.bharatkaitihas.com

सांचोर तथा रतनुपर दुर्ग

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भीमदेव अपनी राजधानी अन्हिलवाड़ा को छोड़कर सांचोर चला आया तथा मुहम्मद गजनवी के विरुद्ध मोर्चाबंदी करके बैठ गया। गजनवी ने सांचोर पर आक्रमण किया। कई दिनों की लड़ाई के बाद भीमदेव को सांचौर छोड़कर भाग जाना पड़ा।
लोद्रवा दुर्ग - www.bharatkaitihas.com

लोद्रवा दुर्ग

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प्रतिहारों की लोद्रवा शाखा इस दुर्ग पर शासन करती थी। नौवीं शताब्दी ईस्वी में यह दुर्ग भाटियों के हाथों में चला गया।
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